हिन्दी साहित्य की प्रमुख रचनाएँ
•) प्रेमचंद द्वारा रचित निर्मला
निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है।
•) हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित मधु शाला
मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है।
•) महादेवी वर्मा द्वारा रचित यामा
यामा एक कविता-संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उनके चार कविता संग्रह नीहार, नीरजा, रश्मि और सांध्यगीत संकलित किए गए हैं।
इस कृति को सन् 1982 में हिंदी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
यामा पुस्तक के कुछ भाग
•)भीष्म साहनी द्वारा रचित तमस
कामायनी' जयशंकर प्रसाद कृत ऐसा महाकाव्य है जो सदैव मानव जीवन के लिए एक प्रेरणा बन कर रहेगा। ... जिसमें प्रसाद जी ने अपने समय के सामाजिक परिवेश‚ जीवन मूल्यों‚ सामयिकता का विश्लेषित सम्मिश्रण कर इसे एक अमर ग्रन्थ बना दिया। यही कारण है कि इसके पात्र - मनु‚ श्रद्धा और इड़ा - मानव‚ प्रेम व बुद्धि के प्रतीक हैं।
मैला आँचल का कथानायक एक युवा डॉक्टर है जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद एक पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है, तथा इसी क्रम में ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दु:ख-दैन्य, अभाव, अज्ञान, अंधविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक शोषण-चक्र में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका साक्षात्कार होता है ...
•) रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित रश्मिरथी
गुनाहों का देवता हिंदी उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है। यह सबसे पहले १९५९ में प्रकाशित हुई थी। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। सजिल्द और अजिल्द को मिलाकर इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं।
दिनकर जी की रश्मिरथी को पढ़ कर एक नई ऊर्जा मिलती है। जीवन को सही दिशा के साथ - साथ यह भी पता चलता है कि " कोई चलता पद चिन्हों पर, कोई पद चिन्ह बनाता है, है वहीं शूरमा इस जग में दुनिया में पूजा जाता है। मेरा ऐसा मानना है कि एक अच्छा लेखन बनने से पहले हमें एक अच्छा पाठक बनना चाहिए। मैं भाग्यशाली हूं कि इन सभी पुस्तकों का निजी संग्रह हैं।
ReplyDeleteहिन्दी साहित्य केंद्रित इस पुस्तक परिचय में संक्षेप में जानकारी दी गयी है। यह अच्छा है। यद्यपि रश्मिरथी का अर्थ सही नहीं है। रश्मिरथी का अर्थ है "सूर्य किरणों पर सवार"
ReplyDeleteछात्र इन पुस्तकों को यदि पढ़ें तो उनमें भाषा और समझ का स्तर बढ़ेगा। आनंद भी आएगा।बधाई💐💐💐
Poorva Meena
ReplyDelete11-A