Monday, August 16, 2021

संस्कृत श्लोक-अर्थ सहित

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसका आलस्य है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र
नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |






गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर है, गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं, ऐसे गुरु का मैं नमन करता हूँ।


विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन !
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!
एक विद्वान और राजा की कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है|


दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक:।।
दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहा कभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।


भूमे:गरीयसी माता,स्वर्गात उच्चतर:पिता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी।।
भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं, माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।


काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।
बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं, जबकि मूर्ख लोग निद्रा,कलह (लड़ाई) और (व्यसनों) बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।


सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:।।
सत्य बोलो, प्रिय बोलो,अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिये। प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।

न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।
 न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं ।

न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति।।
लोगों की निंदा(बुराई) किये बिना दुष्ट(बुरे) व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है परंतु गंदगी के बिना उसकी संतुष्टि नहीं होती 


माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः !
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा !!
जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैं, ऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है| विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के सामान है|


9 comments:

  1. सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट संग्रह। सामयिक और समन्वित भी। संस्कृत हमारे रक्त में है। हमारा डी एन ए है संस्कृत।

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  2. ईश्वरं यत करोति
    शोभनं करोति!!💐💐💐

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  3. संस्कृत की संस्कृति ही अनुपम हैं ।

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  4. सुन्दरम...👌👌 संदीप सर के प्रशंसनीय कार्य

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  5. This comment has been removed by the author.

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