Monday, August 16, 2021

संस्कृत के त्रिमुनि

 

  •    संस्कृत को देववाणी भी कहते हैं।

संस्कृत के त्रिमुनि कौन है -पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि


संस्कृत व्याकरण कि वह तीन विद्वान जिसे त्रिमुनि नाम से जाना जाता है वह है पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि अर्थात् तीन महान विद्वानों पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि को संस्कृत व्याकरण के त्रीमुनि कहा जाता है। इन तीनों का संस्कृत व्याकरण मैं बहुत बड़ा योगदान है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी, कात्यायन ने वार्तिक तथा पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की हैं।

  • पाणिनि – अष्टाध्यायी
  • कात्यायन – वार्तिक
  • पतंजलि – महाभाष्य

पाणिनि :-

पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण माने जाते हैं। इनका जन्म 500 ईसा पूर्व शालातुर ग्राम ( वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर) में हुआ था। इनके पिता का नाम पाणिन तथा माता का नाम दाक्षी था। इनको पाणिनि, दाक्षिपुत्र व शालंकी आदि नामों से जाना जाता है। पाणिनि की शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई थी तथा इनके गुरु का नाम उपवर्ष बताया जाता है। 

पाणिनि की प्रमुख रचनाएं- अष्टाध्यायी,धातुपाठ, गणपाठ उणादिसूत्र, लिंगानुशासन, जंबवती विजय और पाताल विजय



कात्यायन :-

कत्यायन व्याकरण शास्त्र में वार्तिककार के नाम से प्रसिद्घ है। इनको वररुचि के नाम से भी जाना जाता है। इनका समय 400 ईसा पूर्व में माना जाता है। वे दक्षिण भारत के रहने वाले थे। कात्यायन का भाषा विषयक ज्ञान अगाध था। इनके द्वारा अष्टाध्यायी के लगभग 1500 सूत्रों पर 4000 वार्तिक लिखे गये हैं।
कात्यायन मुनि के द्वारा स्वर्गारोहण नामक काव्य भी लिखा गया था।

पतंजलि :-

त्रिमुनि में पतंजलि ही तीसरे मुनि है तथा सर्वाधिक प्रमाणिक वैयाकरण माने जाते हैं। पतंजलि का समय 200 ई. पू. माना जाता है। पतंजलि ने महाभाष्य ग्रंथ की रचना की हैं इस कारण इनको महाभाष्यकार के नाम से जाना जाता है।पतंजलि को शेषनाग का अवतार माना जाता है इनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ में इनके दो नाम मिलते हैं- गोनर्दीय तथा गोणिका पुत्र |

पतंजलि  की उत्पत्ति के विषय में एक कथा प्रचलित है कि महासती गोणिका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शंकर की आराधाना की थी। जब वह नदी के जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य दे रही थी उस समय उनकी अञ्जलि में छोटा सा सर्प का बच्चा प्रकट हुआ। उसको देखकर गोणिका बोली- “को भवान्” शेष बोला- “सप्पाऽहम्।” गोणिका ने कहा- ‘रेफः क्व गतः?’ शेष ने कहा- ‘त्वयाऽपहृतः।’ इसके बाद उस शेष को बालक के रूप में गोणिका ने पाला। वही बालक शेषावतार माना गया।

महर्षि पतंजलि द्वारा रचित ग्रंथ पातञ्जल योग सूत्र व महाभाष्य हैं।

महाभाष्य : –  यह ग्रंथ महर्षि पतंजलि के द्वारा लिखा गया हैं। यह ग्रंथ 85 आह्निक में बंटा हुआ हैं। एक दिन में लिखे गए भाग को आह्निक कहा गया हैं। अत: महाभाष्य को 85 दिनों में निर्मित ग्रंथ माना जाता है।

2 comments:

  1. महाभाष्‍य का कुछ हिस्सा वर्चुअल रूप में पढ़ रखा है। नई नई जानकारी के लिए librarian मैम का 🙏

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