संस्कृत के पिता- पाणिनि
अष्टाध्यायी के लेखक
संस्कृत व्याकरण का जनक महर्षि पाणिनि को माना जाता है ।
पाणिनि (7०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं।
संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।
अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।
पाणिनि की प्रतिभा अनूठी थी। वे संस्कृतभाषा के अद्वितीय विद्वान् थे। इनके द्वारा उस समय संस्कृत भाषा का सूक्ष्म अध्ययन किया गया इसके आधार पर उन्होंने जिस व्याकरण शास्त्र को लिखा वह न केवल तात्कालिक संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ था अपितु उसने आगामी संस्कृत रचनाओं को भी प्रभावित किया। पाणिनि का वैदिक तथा लौकिक संस्कृतभाषा पर अनुपम अधिकार था।
पाणिनि की प्रमुख रचनाएं – इनके द्वारा निम्नलिखित रचनाएं लिखी गई :-
- अष्टाध्यायी :- यह एक व्याकरण ग्रंथ है जो आठ अध्यायों में लिखा हुआ है।
- धातुपाठ :- इसमें लगभग 2000 धातुवें हैं।
- गणपाठ :- पाणिनि के द्वारा एक दूसरे से मेल खाने वाले शब्दों का एक वर्ग बनाया गया जिसे गण कहा गया गण पाठ में 261 गण है।
- उणादिसूत्र :- इनके पाणिनिकृत होने में सन्देह हैं।
- लिंगानुशासन :-इसमें संस्कृत के शब्दों के लिंग का ज्ञान कराया गया हैं।
- जंबवती विजय :- यह एक महाकाव्य हैं।
- पाताल विजय :- यह एक महाकाव्य हैं।
अष्टाध्यायी :-
यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा का अनुपम रत्न है। विश्व की किसी भाषा में इसके जैसा व्याकरण नहीं बना। इसको अष्टाध्यायी, पाणिनीयाष्टक व शब्दानुशासन नाम से जाना जाता है। इसमें आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय का विभाजन चार-चार पादों में किया गया है अत: कुल 32 पाद है। तथा समस्त ग्रन्थ में 14 माहेश्वर सूत्र व 3978 सूत्र है। पाणिनि ने इस ग्रन्थ में संस्कृत जैसी विस्तृत भाषा का पूर्णतया विश्लेषण करने का प्रयास किया है। उनकी विवेचना वैज्ञानिक है, शैली संक्षिप्त, सांकेतिक तथा संयत है। अष्टाध्यायी केवल व्याकरण ग्रंथ नहीं है इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्रण मिलता है उस समय के भूगोल सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन व शिक्षा आदि का प्रसंग यथा स्थान अंकित है।
हमारे नाम में संस्कृत है ..चाहे नाम ख़ुद के हों या अपने देश का नाम हो। हमारा परिवेश ,हमारा वातावरण हमारा वार्तालाप,हमारी बोलियाँ... सभी में संस्कृत के गुणसूत्र हैं। पंजाबी,मराठी,असमिया,हिंदी,बांग्ला,उड़िया,मलयालम,कन्नड़,तेलुगु....कश्मीरी...सभी भाषाओं में संस्कृत है।
ReplyDeleteहम सब यदि थोड़ा श्रम,थोड़ा अभ्यास,थोड़ी रुचि संस्कृत के प्रति दें तो हम अजर अमर मानव संस्कृति के उत्तराधिकारी होने में गर्व कर सकते हैं।